अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते" - अमृता प्रीतम
जब कभी भी प्रेम का इतिहास लिखा जाएगा तो अमृता और इमरोज को हमेशा याद किया जाएगा। जो लोग अमृता और इमरोज को जानते है या जिन्होंने उनके बारे पढ़ा है ,वो जानते है कि अमृता और इमरोज ने प्रेम को किस कदर निभाया है।
जब भी मैं अमृता और इमरोज के बारे में पढ़ती हूं या अमृता प्रीतम की लिखी कोई नज़्म , कविता या किताब पढ़ती हूं तो हमेशा सोचती हूं कि क्या यह उन्होंने इमरोज के लिए लिखा होगा।
कुछ दिनों पहले मेरा न जाने क्यूं अमृता और इमरोज के बारे में पढ़ने का मन किया हालांकि पहले से अमृता प्रीतम , इमरोज और साहिर को मैंने कई दफा पढ़ा है।
इस बार मैंने अपने लैपटॉप में उमा त्रिलोक जो कि अमृता की प्रशंसक और बाद में उनकी दोस्त थी। उनकी किताब "अमृता- इमरोज" डाउनलोड की और उसे रात के तकरीबन 12.30 बजे पढ़ना शुरू किया।
उमा त्रिलोक अपनी किताब में बताती है कि इमरोज अमृता से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। चूंकि अमृता पहले से शादीशुदा थी उनके बच्चे थे और वह इमरोज से 10 साल बड़ी थी। हालांकि अमृता की शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई उन्होंने अपने पति से तलाक लेकर वह दिल्ली में रहने लगी थी।
एक बार की बात है अमृता को अपनी किताब के लिए कवर डिजाइन करवाना था जिसके लिए वह कवर डिजाइन करवाने गई थी। जहां उनकी मुलाकात इमरोज से हुई । इमरोज को पहली ही मुलाकात में अमृता भा गई थी ।
अमृता जब सुबह- सुबह बस से अपने दफ्तर(ऑल इंडिया रेडियो )जाती थी तो इमरोज उन्हें चुपके से देखते थे।इमरोज को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। इसीलिए उन्होंने अमृता के लिए एक स्कूटर खरीदा था ताकि उन्हें उनके दफ्तर छोड़ सके।इमरोज बताते है कि जब भी मैं अमृता को छोड़ने जाता था तो वह पीछे मेरी पीठ पर कुछ लिखती थी.....
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