इमरोज़ जब भी अमृता को स्कूटर पर ले जाते तो अमृता अक्सर उंगलियोंं से हमेशा उनकी पीठ पर कुछ लिखती रहती थीं। इमरोज़ भी इस बात से अच्छे से वाक़िफ़ थे कि उनकी पीठ पर वो जो शब्द लिख रहीं हैं वो साहिर हैं।
ये सिलसिला सालों तक चलता रहा...
*अमृता और साहिर*-
अमृता अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में बताती है कि वह 25 साल की थी । तब लाहौर के पास प्रीतनगर में एक बड़े मुशायरे का आयोजन था।जहां अमृता लाहौर से और साहिर लुधियाना से इस मुशायरे में शामिल होने के लिए प्रीतनगर पहुंचे थे।
इसी मुशायरे में साहिर और अमृता की पहली मुलाकात हुई थी। साहिर कुछ क्रांतिकारी मिजाज के मालूम होते थे और अमृता शांत स्वभाव की ,कहते है न विपरीत लोग एक दूसरे से जल्दी आकर्षित होते है।इसी तरह अमृता पहली ही मुलाकात में साहिर को दिल दे बैठीं थी। साहिर का दिल भी अमृता पर आ ही गया था , लेकिन वो इतने साहसी नहीं थे कि इस बात को स्वीकार करते।
उस दिन लाहौर में हुई मुलाकात में साहिर को अमृता भा तो गई थीं और उन्हें समझ आ गया था कि अमृता को भी वो पसंद आ गए है, लेकिन दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। दोनों घंटों खामोश साथ बैठे रहे।जाते वक्त साहिर ने अमृता को एक नज़्म लिखकर पकड़ा दी।
अमृता ने रसीदी टिकट में उस नज़्म के बारे में बात करती है लेकिन वो नज़्म क्या थी वह नहीं बताती है।कोई नहीं जनता कि वो नज़्म क्या थी, शायद वह इसे दुनिया के साथ नहीं बांटना चाहती थी।इसे बस वह ही जीना चाहती थीं।
उस पहली मुलाकात के बात दोनों के बीच प्यार का सिलसिला चलता रहा। अमृता साहिर को और साहिर अमृता को लंबे-लंबे खत लिखते। कभी-कभी मुलाकातें भी होती। रसीदी टिकट में अमृता साहिर के बारे में बताते हुए लिखती थी कि "वो चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता, आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा देता।जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती। मैं उन सिगरेट के बटों को दोबारा सुलगाती।जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता के साहिर के हाथों को छूं रही हूं। इस तरह मुझे भी सिगरेट पीने की लत लग गई।
बंटवारे के बाद अमृता दिल्ली आ गई और साहिर मुंबई अपनी किस्मत आजमाने चले गए।साहिर ने मुंबई में गाने लिखकर खूब नाम कमाया।इस बीच दोनों का खतों का सिलसिला भी चलता रहा।अमृता के पति प्रीतम सिंह को साहिर से उनकी मोहब्बत के बारे में पता लग गया था।जिसके बाद 1960 में दोनों का तलाक हो गया। अमृता ने पति का घर छोड़ दिया और दिल्ली में एक किराए के घर में अकेले रहने लगीं।
साहिर मुंबई कि चकाचौंध के इतने पास चले गए की ,वह अमृता से दूर हो गए। प्रेम बहुत दूर होते-होते एक दिन बहुत दूर चला गया।
इसी दौरान इमरोज अमृता की जिंदगी में आए। एक ऐसा व्यक्ति , जो यह जानते हुए कि वो जिस स्त्री से प्रेम कर रहा है ,उसकी शादी किसी और से हुई है, प्रेम किसी और पुरुष को करती है , उसने उसके साथ रहना और जीना स्वीकार किया। सिर्फ जीना ही नहीं , बल्कि उसने अपना समूचा जीवन उस स्त्री को अर्पित कर दिया।
इमरोज के साथ स्कूटर पर पीछे बैठी अमृता इमरोज की पीठ पर अपनी उंगलियों से साहिर का नाम लिखतीं। वो जानते थे , लेकिन अमृता के प्रेम का आदर करते थे।
उमा त्रिलोक कि लिखी किताब "अमृता इमरोज" में उमा बताती है कि इमरोज कहते थे कि जब आप किसी से प्रेम करते है तो आपका अहं मर जाता है, फिर वह हमारे और हमारी महबूबा के बीच नहीं आ सकता।
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